जीवन के विभिन्न युग
माँ से ही करनी होती है प्रार्थना। क्योंकि माँ है बच्चे की पहली गुरु। उसे पता होना चाहिए कि गुरु होकर क्या नही सिखाना। अभी तो सिखाना शब्द पर ही confusion है। teacher और गुरु में फर्क है। जो भी सोचती है या महसूस करती है, वो सब बच्चा गर्भ में absorb करता है। अक्सर माँ को पता ही नही होता कि उसने क्या सिखा दिया बच्चे को। प्रकृति ने हर योनि, हर शरीर को आत्मनिर्भर बनाया है। सिर्फ माँ बनने के लिए स्त्री पुरुष पर निर्भर करती है। पुरुष को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी जरूरी है कि जो वो दे रहा है, वही deliver करेगी स्त्री। society में unrest, confusion बढ़ता गया। क्योंकि एक जिम्मेदारी प्रकृति ने स्त्री और पुरुष को दी थी, की अपनी सांस ठीक से लेनी है। स्त्री में माँ बनने की इच्छा थी, desire। और इसलिए उसकी needs भी थी, जो पूरी ना होने पर greed बनती चली गयी। कुल मिलाके जीवित प्राणी में 24 molecules यानी तत्व होते है। और सभी को balance रखना होता है जरूरी। युगों के बारे में हम जानते हैं कि 4 युग होते है। पहला युग है सतयुग, यानी total enjoyment का युग। किसी प्रकार की कोई चिंता नही। 0 से 10 साल तक चलता है